ज़िन्दगी की कश्मकश
ज़िन्दगी की कश्मकश है इतनी सी
सब साथ दिखते हैं
पर कोई साथ रहता नहीं
समय चलता हुआ दिखता है
मगर साथ चलता नहीं
राहें दूर तक दिखती हैं
मगर कहाँ ले जाएँगी पता नहीं
सांसें दिन-रात हमारे अंदर ही घूमती हैं
फिर भी कब चली जाएँ पता नहीं
कर्म ही हैं केवल ऐसे
जो साथ रहते हैं और साथ ही जाएँगे॥
---वन्दना सूद