दिल में बस आप की चलती क्या
फिर शिकायत हमको आपसे क्या
एक लम्हा पास आकर बैठती जरा
दौलत एक तरफ हमको उससे क्या
नसीब वालो को मिली दोस्ती तुम्हारी
बहुत कुछ दुनिया में हमें उससे क्या
चाय भी पीते किसी को होता नशा
हमें तुम्हारा नशा इससे उससे क्या
संजो कर रखना लम्हों को 'उपदेश'
गुलाब जैसे महकेगे तुम्हें उससे क्या
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद