हर राह में काँटे बिछे हैं, फिर भी पाँव चलते हैं,
अंधेरे जब डराते हैं, तो दीप खुद जलते हैं।
हवा उलटी बहे तो क्या, पतवारें डगमगाती हैं,
किनारे की तरफ लेकिन, उम्मीदें ले जाती हैं।
चुनौतियाँ न हों तो फिर, जीवन कैसा जीवन है?
जो थककर बैठ जाए, वो लक्ष्य से अनजान है।
गगन छूने का सपना, धरती से ही उगता है,
संघर्षों की बारिश में ही, विश्वास महकता है।
हर ठोकर एक सीख बने, यही तो पहचान है,
जो गिरकर फिर उठे वही, सच्चा इन्सान है।
मत डर मुश्किल राहों से, तू धूप में चलता चल,
हर छाँव के बाद मिलेगी, राहत की इक हलचल।
जिन्हें मिली है मंज़िल, वो कांपे नहीं आँधी में,
चुनौती को वरदान समझ, तू डूब जा साधना में।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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