मैं हर रोज़ शिकार होता हूँ
सोशल मीडिया में थंबनेल
पर एक चारा परोसा जाता है,
मैं स्वीकार कर लेता हूँ
और मारा जाता हूँ।
मैं हर रोज़ शिकार होता हूँ
जहाँ देखता हूँ, हर ओर
विज्ञापनों का फंदा लटका
पाता हूँ, बहुत कोशिश करता हूँ
मगर लटक जाता हूँ।
मैं हर रोज़ शिकार होता हूँ
मंच से प्रवचन होता है,
मेरे अंदर से धर्म उठता है,
फिर मैं हाथ जोड़कर दंडवत
अनुकरण करता हूँ।
मैं हर रोज़ शिकार होता हूँ
अब मैं जानता हूँ, मैं शिकार हूँ,
सिवाय इसके मैं और क्या हूँ?