अब भी वो मगरुर बहुत हैं
आदत से मजबूर बहुत हैं।
इतने पास हैं गैरों के हम
अपनों से ही दूर बहुत हैं।
नजर बचा कर चले गए तो
दिल के शीशे चूर बहुत हैं।
दूर वतन से अपने जाकर
लोग वहां मशहूर बहुत हैं।
रिश्ते नाते सब बंधन हैं
फूलों में ही शूल बहुत हैं।
अपने गम तो भूल गए हम
दुनिया के नासूर बहुत हैं।
रोज बरसती हैं अब आंखे
सावन के दिन दूर बहुत हैं।
दास हमारी है मजबूरी
खट्टे ये अंगूर बहुत हैं।।