नदियों का रास्ता रोका तो मूड गई।
बस्तियों के बीचोबीच में पसर गई।।
ज़माने को समझाना टेढी खीर लगा।
लालची लोगों की कमाई लेकर गई।।
किनारा खोजने का सिलसिला जारी।
परिवार की कश्ती डूबती नजर आई।।
आँखों से आँसू भी कब तक बहाते।
नीतियों की मार से गरीबी पसर गई।।
मोहब्बत की शाख बची नही 'उपदेश'।
धार्मिक उन्माद के नीचे से गुजर गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद