आ गया फिर से वही आग उगलता मौसम,
फिर तपाने लगा रात दिन झुलसता मौसम।
चांदनी रात की ठंडक
को निगल जाता है,
सारे दिन गरमा गरम
ओले ये बरसाता है।
चमकता धूप में सोने सा पिघलता मौसम।
इसकी गर्मी को सिर्फ
वृक्ष ही सह पाते हैं,
सारे मासूम पेड़
जड़ से सूख जाते हैं।
उफन रहा है दुपहरी में उबलता मौसम।
सबसे ये जलता है
इससे भी सभी जलते हैं,
इसकी लू की बुरी नजर
से बच के चलते हैं।
अपने दिल को भी जलाता है ये जलता मौसम।
गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर मध्यप्रदेश

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




