पहाड़ों की गोद में पली, बढ़ी थी मैं
फूलों की चादर ओढ़ कर खड़ी थी मैं।
राह में तेरी पलकें बिछाए,
तेरे इंतज़ार में खड़ी थी मैं।
उम्मीद थी मुझे,
पूरा विश्वास था मुझे —
तुम आओगे, तुम ज़रूर आओगे।
रोक नहीं पाएंगी तुम्हें ज़माने की ज़ंजीरें,
मिला ही देंगी हमें हाथ की लकीरें।
तय कर लोगे तब तुम
अपने और मेरे बीच की दूरी,
तब नहीं होगी हमारी कोई मजबूरी।
तब मैं दरवाज़े पर —
हाथ में जयमाल और आरती का थाल लेकर
खड़ी मिलूंगी तुम्हें।
तब हम मिलेंगे सदा के लिए,
हमारा मिलन आत्मिक होगा —
युगों-युगों तक होगा।
— सरिता पाठक

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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