अपने बचपन के सारे ठिकाने गए।
रंगीन मौसम रहे कितने सुहाने गए।।
मोहब्बत झाँकने आई शर्म लेकर।
दुर्भाग्य से खजाने भरे ज़माने गए।।
मिट्टी के सारे खिलौने टूट कर बिखरे।
मोहब्बत गई 'उपदेश' फंसाने गए।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
Ghaziabad
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
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मिट्टी के सारे खिलौने टूट कर बिखरे।
मोहब्बत गई 'उपदेश' फंसाने गए।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
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