ना किसी से गिला है, ना किसी से शिकवा है...
ना किसी से गिला है, ना किसी से शिकवा है,
क़ुबूल है हर वो दर्द जो हमे इस दुनियां से मिला है।
बेरहमी पूरी निभाई इस दुनियां ने हमसे,
पर हम भी इरादे के पक्के थे,
दुनियां के हराने से हार मानने वाले नहीं थे।
कभी वक्त वो भी था, जब इस दुनियां में ना मेरी
चली थी और ना ही मेरे दिल की चली थी,
यहां तो सिर्फ़ बेरहम दिलों की चली थी।
पर फिर वक्त हमारा भी आया एक दिन,
और फिर हमारी ही चली।
ना किसी से गिला है, ना किसी से शिकवा है.....
ना किसी से गिला है, ना किसी से शिकवा है,
क़ुबूल है हर वो दर्द जो हमे इस दुनियां से मिला है।
कभी नाकारा समझते थे जो लोग हमे,
आज दास्तां -ए-कामयाबी हमारी सुनाते फिरते हैं।
कभी जो हमे देखना नहीं चाहते थे,
आज वो देखने को तरसते हैं।
लोग वो, जिन्हें बात करना पसंद नहीं था हमसे,
आज वो बात करने को तरसते हैं।
पर अब हम इंतक़ाम चाहते हैं,
जिसने तरसाया हमे, उसे तरसाना चाहते हैं।
~ रीना कुमारी प्रजापत