बेटी, "सब ठीक हो जाएगा"
नाम बदला, घर बदला, पहचान भी नई बनाई, खुशियाँ बाँटके भी खुशियाँ कहाँ उसके हिस्से आई। हर रिश्ते को निभाया उसने पूरे मन से, लड़की थी, सिखाया जो गया था उसे बचपन से।
हर बात पर नसीहत, बात-बात पर टोकना, बहुत कुछ करने को कहना और बहुत कुछ करने से रोकना। क्या लाई साथ में और क्या नहीं, और दिन में कई बार ये ताना सुनना कि तुम क्यों नहीं कर सकती कुछ भी सही।
वो पति का समझ के भी कुछ न कह पाना, या सबकी बातों में आकर 'हाँ' में 'हाँ' मिलाना। अंदर के दर्द को सिर्फ़ आँखों ने किया बयां, और आँखों में आँसू को नौटंकी समझा गया।
बात ये नहीं कि एक स्त्री कमज़ोर है, बस संस्कारों का बोझ अक्सर वो ही उठाती है। चाहकर भी वो कहाँ सब कुछ कह पाती है, घर वाले रोज़ कहते हैं, "बेटी, सब ठीक हो जाएगा।" और वो ठीक होने के इंतज़ार में अक्सर पूरी उम्र बिताती है।
रचनाकार- पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा...अरेराज, पूर्वी चम्पारण (बिहार)