बातों बातों में
बातें कुछ ऐसे शुरू हुईं
कि समय बीतता चला गया
और जब बातें थम गईं,
तो एहसास हुआ कि
बातों में बात तो कुछ थी ही नहीं ,
‘मैं’शब्द ने ही उलझाए रखा
मैं वहाँ गया ,मैंने यह सोचा,मैंने यह किया
मेरी लाइफ,मेरे लक्ष्य और सिर्फ़ मेरा वजूद
जाने-अनजाने हमारी बातें ‘मैं’ ने ले लीं
आज हर कोई स्वयं को सुनाना चाहता है
शायद असल ज़िन्दगी कहीं गुम हो गई है
जहाँ दूसरों की बातें सुनने का शौक़ हुआ करता था
मिलकर हंसी ठठोली हुआ करती थी
मनाना रूठना हुआ करता था
दिखावटी रंग कहीं मिलता ही नहीं था
महफ़िलें महफ़िलों की तरह ही लगती थीं
परिवारों के आँगन ख़ुशियों से चहकते दिखते थे
ज़िन्दगी अपने रंग बदलते हुए भी जीने के काबिल हुआ करती थी..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




