क्या अंधेरगर्दी है ।
घूम रहें अधर्मी हैं ।
पाप कर्म में रती हैं ।
मारी गई मति है।
है यह कलयुग है।
लगता ये भठ युग है।
आदमी आदमी को
खा रहा है।
अंधकार उजाले पर
हावी हो रहा है।
सिर्फ़ नफरतें हैं ।
क्रोध है आशक्ति है।
लोगों के मन बस
दिखावे की भक्ति है।
लूट है भ्रष्टाचार हक मारी है।
गली गली घूम से व्यविचारी हैं।
ना शासन का और ना प्रशासन का
डर है।
हर नुक्कड़ चौराहे पर खड़े पड़े
दुशाशन हैं ।
देवियों के देश ने रोज़ सीता हरण
हो रहा है।
युवा की तो छोड़ हीं दो
बच्चें बूढ़े बुजुर्ग भी ना बच पा
रहें हैं।
लोग जाती धर्म के नाम पर
नंगा नाच कर रहें हैं।
अधर्मी धर्म की बात
तो विधर्मी विधान रच रहें हैं।
यहां जिसकी लाठी उसकी भैंस है ।
यहां पापियों की ऐश हीं ऐश है।
अब लोग खुद को भगवान से भी बड़ा
समझ रहें हैं।
आसमानों में उड़ कर ज़मी को
चिढ़ा रहें हैं।
लगता है लोग अपनी औकात भूल
गए हैं।
मिलना ही तो है मिट्टी में एक दिन
चाहे जितना भी जोड़ लगा लो।
खुदा की खुदाई आज भी जिंदा है
ये बात गले में उतार लो।
है यह मृत्युलोक
यहां हर चीज़ का हिसाब होगा।
बीना हिसाब चुकता किए
यहां से जाना भी ना होगा।
चाहें जितना भी दूर भाग लो
कर्मों का हिसाब ज़रूर होगा
तुम्हारा हिसाब ज़रूर होगा
कर्मों का लेखा जोखा होगा हीं होगा..
कर्मों का लेखा जोखा होगा हीं होगा...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




