:मै धरती की बेटी हूं
मुझें माटी ने पाला है
रगो मे बह रही मेरे जो
खून की धारा है उसमे
अन्न है यहां का पानी है
:समुंदर से हिमालय तक जिसका बोलबाला वो भारत देश मेरा है
प्यारा वतन हमारा है
चंदा से मंगल तक हमने
परचम लहराया है
धन्य है जवान इसके
देश की खातिर शीश अपना कटाया है,
जिसने भी आंख दिखायी उसे
गिन गिन कर काटा है
करगिल हो या आपरेशन सिंदूर
हर जगह उनकी विजय गाथा है
अर्पिता पान्डेय