धूप सी जलती रही, छाँव की तलाश थी,
ज़िन्दगी हर मोड़ पर, इक नई प्यास थी।
काँटों की चुप्पी में भी, फूलों का गीत था,
दर्द की बाँसुरी में, आशा की मिठास थी।
तूफ़ानों से कह दिया, हिम्मत मेरी मीत है,
हर तपिश के बाद ही, बूँदों की मिठास थी।
छाँह को तरसते थे, जलते हुए सपने,
संकल्प की छाया में, शौर्य की प्रकाश थी।
हार को भी बाँह में भर, मुस्कुरा चली मैं,
नीर में भी भीगती, आग की उपास थी।
अंधकार के गर्भ से, उगता रहा सूरज,
संघर्ष की भूमि पर, विजय की विलास थी।
"फ़िज़ा" कहती है यही, थकना तुझे मना है,
राह हो कठिन भले, मंज़िल भी पास थी।
----फ़िज़ा

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




