मुहब्बत का न था, कुछ हमको तज़रबा देखो..
वो चाहे ज़फा करें, बस अपनी रहे वफ़ा देखो..।
ख्यालों में जो महल बने, वो तो न आबाद हुए..
टूटे दिल में भी, अब कोई नया दर्द उठा देखो..।
न कुछ भरोसे की बात है, न ही उम्मीद है कोई..
फ़िज़ाँ कुछ बदली, तो बहुत बदल गई हवा देखो..।
जाने क्यूं इन दिनों, बेवजह ही नासाज़ है तबियत..
इस मर्ज़ के मुताबिक़ ही, अब कोई और दवा देखो..।
जिस ज़िस्म पर बेशकीमती पोशाक थी कभी वो ही..
एक कफ़न के दाम पर, अपनो के हाथों बिका देखो..।
पवन कुमार "क्षितिज"