करके सूना वो आंगन–घर..
सबके कर चले नयन "आर्द्र"।।
भावांजलि स्वतः दे रहा मन..
हूक हृदय में उठे, रह रह कर।।
इतना सीमित सा समय लेकर..
क्यूं देखने आए ये भव–सागर।।
"अ"शोक होकर क्यूँ ये शोक दिया..
कैसे चलेगा "वो"अकेला हमसफर।।
ना मिले कभी, ना ही कुछ बात हुई..
फिर भी नैना तलाश रहे इधर–उधर।।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




