हैं ख़्वाब सुनहरें गहरे
हैं रंग बहुतेरे पहरे
सांसों पर चोट गहरे
सब लगते ठहरे ठहरे
हैं ख़्वाब सुनहरें गहरे..
मिले बिछड़े फ़िर मिले
राहें मुड़ीं ख़ुद ब ख़ुद
मुड़ गए।
वो देखते रहे हम भी
देखते देखते सब
ज़ुदा हो गए।
ख्वाबों की झुरमुट में
फिर खो गए
और अंततः जहां से
चले थे ..
वहीं पहुंच गए..
फिर वहीं पहुंच गए..