मेरे इरादे ही मेरे जज्बात से उलझ बैठे
मेरे सवाल ही मेरे हालात से उलझ बैठे
उठ रहे थे बार-बार मन में जो ख्याल
मेरे ख्याल ही मेरे संवाद से उलझ बैठे
जिन सवालों के हमें मिले नहीं जबाब
वही सवाल मेरे जबाब से उलझ बैठे
दिए हमको जिसने ये जख्म रोज नए
वो दर्दे दिल को ही इलाज समझ बैठे
हमने प्यार की खातिर जो फैलाया दामन
गरीबी से हमको वो आबाद समझ बैठे
अक्श अपना वो मेरी आंखों में देखकर
इन आंखों को वो हवालात समझ बैठे
इजहार ए इश्क उनसे जो किया हमने
वो इसे भी एक मुलाकात समझ बैठे
वो नादां हैं उन्हें अब माफ कर दे यादव
कहीं जमाना ये तुझे नायाब समझ बैठे
- लेखराम यादव
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