रेत मुट्ठी से फ़िसल कर आजाद हो रहा।
दूरियाँ मत बढ़ाओ रिश्ता बर्बाद हो रहा।।
सुबह शाम की परछाई अँधेरे में गुम गई।
सौभाग्य से मिलन का फल स्वेद हो रहा।।
मैं तुम्हारा तुम हमारे कहने से शर्माते क्यों।
खुदाई के फजल से रिश्ता इज़ाद हो रहा।।
इश्क की बाजीगरी देखी न गई लोगों से।
फिर क्यों समाज का मीठा स्वाद हो रहा।।
सता रही तेरी जुदाई ख्वाब बढ़ते जा रहे।
ज्ञान के प्रयोग से 'उपदेश' संवाद हो रहा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद