अजीब सी कसक है सीने में,
फिर भी मज़ा है जीने में।
कहो चाहे तुम कुछ भी हम सुन लेंगे,
दिलचस्पी है ग़मों को पीने में।
भूलना चाहते हैं बीते दिनों को,
पर रोजाना दिख जाते हैं आईने में।
भूल कर भी भूल पाते नहीं इन्हें,
और फिर शामिल कर लेते हैं नगीने में।
कभी ख़ुलूस का रिश्ता था जो,
दिखता नहीं अब उसके क़रीने में।
अजीब सी कसक है सीने में,
फिर भी मज़ा है जीने में।
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐