नींद आते ही बीते कल मंडराने लगते।
बहस की कहानी को गुनगुनाने लगते।।
नये आकाश में लगता नही मन मेरा।
सितारे करीब आकर बहलाने लगते।।
मेरे अन्दर की उथल-पुथल थमे कैसे।
तरह-तरह के तरीके बड़बड़ाने लगते।।
वक्त बुरा देखकर बदल गए जो लोग।
मेरे हाल पर 'उपदेश' मुस्कराने लगते।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद