समज भटकी तो ख्याल भी भटके
साहित्य के बगेर सम्मान भी भटके
ये मेरा हे ये मेरा हे करते-करते
लोग अपने इमान से भी भटके
घर में सोच समजकर बोलो
दीवारों के कान भी भटके
जिसे नहीं पूछना था उनसे पूछा
वो लोग भी अपने अरमानको भटके
कुछ गरीब लोग वस्त्र विहीन रहे
बड़े लोग अपने परिधान को भटके
जो चोरी करते हे उनका क्या दोष
रक्षा करनेवाले अब दरबान भी भटके
शहरो में तो कुत्तों की कीमत लगती हे
अपने सोख की खातिर इन्सान भी भटके
के बी सोपारीवाला