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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

सोचिए ज़रा

सोचिए ज़रा,
जब कभी मैं आ गई आपके सामने
तो मुझे पहचानोगे कैसे ?
ना कभी आपने मुझे देखा ना ही कभी
मेरी आवाज़ सुनी है
फिर जब कभी किसी मोड़ पर टकरा गए
तो मुझे पहचानोगे कैसे ?
सोचिए ज़रा....!!

फिलहाल आपके पास फ़क़त मेरी
ग़ज़लें और नज़्में ही हैं जिनके ज़रिए
आप मुझे जान सकते हैं,
मेरी ग़ज़लों,मेरी नज़्मों में कुछ सुराग़
ऐसा ढूंढा क्या ?
कि कभी हो जाए किसी मोड़ पर आमना-सामना
तो मुझे पहचान सको।
सोचिए ज़रा.....!!

मेरी नज़्मों, मेरी ग़ज़लों में कुछ अलग
महसूस हुआ क्या ?
कुछ ऐसा जो मेरी सबसे अलग पहचान रखता हो,
कुछ ऐसा कि जब मिले हम भरी भीड़ में भी
तो आप मुझे पहचान सको।
सोचिए ज़रा......!!

🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (7)

+

श्रेयसी said

Ji sahi kaha aapne isiliye koi code bata dijiye 😊😊sundar rachnaa 👌👌

रीना कुमारी प्रजापत replied

Na ji na didu raani code hum nhi batayenge, code khud apko hi dhundhna hoga humari rachnaon mein bas itna yaad rakhna ki ek din apne humse kaha tha ki kabhi humse bhi Milo chandani Raat mein to haa chandani Raat zarur hogi us din🙏 bahut bahut shukriya apka itni sundar pratikriya ke liye

Lekhram Yadav said

अगर इतने खूबसूरत अन्दाज में कविता करोगी तो हम भी अवश्य पहचान लेंगे अपनी प्यारी बहना को। इस सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद सहित नमस्कार।

रीना कुमारी प्रजापत replied

Ji shukriya apka ki aap hume pahchan lenge🙏😊

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

इक सुन्दर कविता सी हो खुद, शब्द ओढ़े जो चले, सोचना कैसा है इसमें, चलती फिरती नज़्म हो, देखने में ऐसे हैं लगतीं शायरी हो या परी, जिन्दादिल हो शान हो खुद आपसे हैं महफिलें, एक तरफ हैं आप तो, दूजी हुनर है आपका, राह में संगीत बजता, घर से निकलते आप जब, रौशनी होती है तुमसे चांदनी भी आपसे, इक सुन्दर कविता सी हो खुद, शब्द ओढ़े जो चले। आप चलती हैं, तो चलती हैं हवाएं, सन सनन, आपकी पायल के घुंघरू भी बजे हैं, खन खनन, आप निकलें राहों में जब चाँद भी शर्माता है, दिन में जब भी धुप बदले छाँव निकले आसमान, तब ही समझो आरहा है आपका कोई काफिला, हाँ यक़ीनन आप ही बस आपसे होता है ये, इक सुन्दर कविता सी हो खुद, शब्द ओढ़े जो चले। बारिशें होती हैं जब भी मुस्कुराते आप हो, बस इतनी पहचान है काफी, कहने को यह आप हो, आप मिले कहीं राह में या भरी महफ़िल कहीं, इतने निशाँ जेहन में है हम कह सकें यह आप हो, सोचना कैसा है इसमें, चलती फिरती नज़्म हो, इक सुन्दर कविता सी हो खुद, शब्द ओढ़े जो चले।

रीना कुमारी प्रजापत replied

Ohh my god...😀😀 Hum khush huye🙏🙏thanks bhaiyya

रीना कुमारी प्रजापत said

Meri is rachna pe ye kisko gussa aaya hai...

वन्दना सूद said

Sundar rachna 👏👏

रीना कुमारी प्रजापत replied

आभार आपका

कमलकांत घिरी said

वाह बहुत सुंदर रीना दीदी👌🙏लेकिन सोचना तो पड़ेगा हमें भी..🤔

रीना कुमारी प्रजापत replied

शुक्रिया भाई... हां सोचिए सोचिए.... कहीं ऐसा ना हो कि हम कभी रूबरू हो जाए और आप हमे पहचाने ही नहीं 😊

सुभाष कुमार यादव said

सादा, सरल, सुंदर, श्रेष्ठ रचना।👌👌🙏

रीना कुमारी प्रजापत replied

आभार आपका

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