सोचिए ज़रा,
जब कभी मैं आ गई आपके सामने
तो मुझे पहचानोगे कैसे ?
ना कभी आपने मुझे देखा ना ही कभी
मेरी आवाज़ सुनी है
फिर जब कभी किसी मोड़ पर टकरा गए
तो मुझे पहचानोगे कैसे ?
सोचिए ज़रा....!!
फिलहाल आपके पास फ़क़त मेरी
ग़ज़लें और नज़्में ही हैं जिनके ज़रिए
आप मुझे जान सकते हैं,
मेरी ग़ज़लों,मेरी नज़्मों में कुछ सुराग़
ऐसा ढूंढा क्या ?
कि कभी हो जाए किसी मोड़ पर आमना-सामना
तो मुझे पहचान सको।
सोचिए ज़रा.....!!
मेरी नज़्मों, मेरी ग़ज़लों में कुछ अलग
महसूस हुआ क्या ?
कुछ ऐसा जो मेरी सबसे अलग पहचान रखता हो,
कुछ ऐसा कि जब मिले हम भरी भीड़ में भी
तो आप मुझे पहचान सको।
सोचिए ज़रा......!!
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️