मेरे अपनो के है ना जाने कितने ही नाम
वक्त्त था अच्छा तो हर कोई करता था मुझे सलाम।
आ गई थी मेरे जीवन मै भी दुख की एक शाम
उस बुरे वक्त मै जब मै हुई नाकाम।
पुकारा कुछ अपनो को,ना जाने कितने ही पुकारे नाम
मिला जवाब सिर्फ ये व्यस्त है हम अभी, अपने भी तो है हमे कुछ काम।
किसी ने भी नही लिया ये हाथ थाम।
बताकर सबको हमारी मजबूरी उल्टा किया हमे बदनाम।
-राशिका ✍️✍️✍️