आज शाम फ़ुरसत के कुछ पल मिले
आसमाँ की ख़ूबसूरती निहारने लगी
जो अनगनित तारों से जगमगा रहा था
मन में सोच चलने लगी कि
सब तारों की नज़र रोज़ हमें देखती है
उनके लिए हम सब उनके अपने हैं
पर हमारे लिए तो वो सब अजनबी ही हैं
तभी एक तारे पर नज़र आ रुकी
जैसे मुझसे दोस्ती का हाथ बड़ा रहा हो
तो मैंने भी बिना देरी किए उसे अपना दोस्त बना लिया
अब रोज़ अपने नए दोस्त से मिलने का इंतज़ार रहता है
अब अपने दोस्त के लिए फ़ुरसत के पल नहीं ढूँढती
बल्कि उसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया
प्रकृति हर तरह के रंगों से भरी है
जितना इससे जुड़ते चले जाते हैं उतना ही अपने आप से मिलते जाते हैं ॥
वन्दना सूद