धर्म पर,
अधर्म का शासन कैसे हो सकता है।
धृतराष्ट्र,
न्याय प्रिय कैसे हो सकता है।
भरी सभा में,
अंकीलाल झूठ बोलता है।
सामने वाले का,
खून खौलता है।
इंकी रानी बेचारी,
गिरगिट की तरह रंग बदलती है।
एक दूसरे को,
चने के झाड़ पर चढ़ाती है।
डंकी लाल डफर,
चैन से सोता है।
गाय के दूध को,
बकरी का बता कर बेचता है।
पानी मिलाकर भी,
अच्छी कमाई हो जाती है।
सरकारी होने के साथ-साथ ,
वह हलवाई भी है।
न जाने अब कैसे,
छापामार कार्यवाही हुई है।
बक्से में बंद,
कागजों की पहचान हुई है।