हजारों में एक बस मेरा गरीबखाना है
सामने मन्दिर है बगल में मयखाना हैll
जा रहा है सामने इबादत करने वाला
बगल में जानेवाला कोई तो दीवाना हैll
खोया हुआ है ध्यान में वो आस्था लिए
जो पी रहा है जाम उसे यूँ चिल्लाना हैll
देता है कोई रोज परिंदों को दाना पानी
इधर भरा जाम और बस खुद खाना हैll
ये दास यहाँ पर जैसी जिसकी इच्छा है
राह चुनी खुद हमने ही जिस पे जाना हैll