इक शख्श से,
मुलाक़ात जो हुयी,
जिंदगी जीने का सलीका,
आगया है,
वो मासूम,
दिल भी है मासूम उसका,
ज़मीन पर कहीं से,
उतर आगया है,
वो इतना है प्यारा,
वो इतना है न्यारा,
नहीं कोई उसका,
सानी जहाँ में,
मगर वो न जाने,
मुझे क्यों मिला है?,
क्यों टकराया मुझसे?,
क्यों घुल मिल गया है?,
वो स्नेहिल, वो हमदम सा,
दिखता ही क्यों है?
कितना अलग है वो,
दुनिया के ढोंगो से,
मगर क्यों है रहता?,
वो गुमशुम सा जब तब,
मगर उसको आया,
हँसाना कहाँ से?
कहीं वो कोई,
जादूगर तो नहीं है?
या है खुदा फिर?
है क्या ये फ़साना?
हो गर कहीं तो,
सुनो भी न 'जाना',
मेरे ही बन रहलो,
कहीं तुम न जाना।
✍️ अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' ✍️
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