आँसुओं को मोती बना दो न,
भावों से राग नया सुना दो न,
तुम्हें समर्पित, रचे जो गीत,
अपने लहजे में उसे सुना दो न।
आँसुओं को मोती………।
ये पीड़ाओं का प्रबल ज्वार है,
ये भावनाओं का उद्गार है,
तुम्हें समर्पित, रचे जो गीत,
अपने लहजे में गुनगुना दो न।
आँसुओं को मोती………..।
कितने लिखे, कितने मिटा दिए,
गीत कईं मैंने तुम्हारे लिए गा दिए,
तुम्हें समर्पित रचा मैंने मुक्तक,
ये मुक्तक अपने लहजे में सुना दो न।
आँसुओं को मोती…….....।
परिणय होगा विरह-मिलन का,
बाराती बन नाचेंगे सुख व दुख,
नेह-विछोह के ये मधुर गीत,
अपनी आवाज में सुना दो न।
आँसुओं को मोती……......।
🖊️सुभाष कुमार यादव