प्रिये तेरी बातों में कुछ तो फरेब रहा है।
ढूंढता रह गया मैं, तेरा इकरार कहाँ है।
बात-बात में तूने,बात को ऐसे मोडा है।
सुनने वाला बस,तुझे देखता ही रहा है।
किसे होश बात में,तेरा दीदार गजब है।
आई महफ़िल में,भूलकर क्या काम है।
सीधा जबाब देना था जबाब नदारद है।
शून्य में घर बसे, शून्य में रहा जबाब है।
एक ही छबि बार-बार सामने आती है।
तेरे आशिकों में,उम्रदराज मगर कई है।
बोली थी तू घंटो,बहस का विषय नही।
प्रेम इजहार बाँकी चितवन का खेल है।
छुपे तेरी आँखों मे,सपने जो सजे हुए।
बेकरार दिल मे हम,हर नक्श बसाए है।
प्रेम गली में ठिकाना नही मिल पाया है।
प्रेम का मंजर, मगर दिल में समाया है।
क्या करे आशिक पुराने है चाहत लिए।
झूठी सच्ची बात में, अल्फ़ाज़ ढूंढते है।
दिल जो चुराया तूने क्यों नही चोर कहे।
आशिक चढ़ अटारी, तुझे चोर कहते है।
#सुरेश_गुप्ता
स्वरचित