कोई अपराध नहीं,
फिर भी सजा मिली।
बेगुनाह का दिल,
रो रोकर थक गया।
सच बोलने की सजा,
कितनी भारी है ।
न्याय की पुकार,
हवा में गूंजती है।
कानून के शिकंजे में,
फंसा हुआ है ।
बेबस सा लगता है,
जैसे पंछी पिंजरे में।
सत्य की तलाश में,
भटक रहा है।
कब मिलेगा न्याय,
कौन जाने।