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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

महंगाई की अन्तिम अभिलाषा - राजेश कुमार कौशल

हिमालय पर्वत की उच्चतम चोटी पर,
आलीशान सिंहासन लगाए हुए,
आम जनमानस को तड़फाए हुए,
बेवाक कमरतोड़ निर्लज्ज महंगाई,
देख सुन रही थी लौकिक प्रसारण,
धरती का जहां दो जून खाने को,
झड़प तड़प रहे थे अनेकों जीव,
मन पिघला जागी मातृत्व भावना,
ढूंढने लगी आम जीव के लिए वो,
निःस्वार्थ जीवनयापन की संभावना,
छोड़कर तेवर गुर्राए गरमाए हुए,
वो मन ही मन सोच रही थी,
एहसानमंद पायदान को छोड़कर,
पीड़ित जनमानुष से इस धरती पर,
संवाद फरियाद सुनने बतियाने की,
इच्छा जगजाहिर कर रही थी वो,
लेकिन स्वच्छ झलक रही थी,
विवशता उसपर अहसानों की,
बेड़ियां वक्त बेवक्त फरमानों की,
जो फर्श से अर्श के सफर में थे,
हमसफर कई दशकों जमानों से,
एकजुट नामी बेनामी महाशय,
जिनके एहसानों की जंजीरों ने,
जकड़ रखा था निर्जन ऊंचाई पर,
जहा थे पहरेदार होशियार चौकन्ने,
गिद्धों की मंडली के थे अंगरक्षक,
जहां से चाहते हुए भी नामुमकिन,
था उच्चशिखरीय पायदान लांघना,
मजबूर थी वो अट्टहास लगाने को,
हिमालय की उच्चतम श्रृंखला से,
बेचारे असहाय उन धरा जीवों पर,
जो रहनसहन खानपान के लिए,
अरसे से ढूंढ रहे है उस शक्ति को,
अवतार मसीहा ईश्वर भगवान को,
जो धरती की निशुल्क कोख में से,
जीवो के लिए सहेजे अन्नजलवायु,
अमूल्य संसाधन अथाह भण्डार के,
एक समान वितरण की दे सौगात,
न काहू से दोस्ती न काहू से हो वैर,
फलेगा फूलेगा व्याकुल हरेक जीव,
रोजमर्रा छटपटाहट से मिले निजात,
महंगाई भी राजी है अवतरण को,
विश्वस्त सीढ़ी की है उसे तलाश,
बंधुआ महंगाई निर्दोष है सचमुच,
राह देख रही है धरा पर बसेरे की,
जबड़े शिथिल है बूढ़ी महंगाई के ,
निगलकर कई जीवों के अरमान,
खूंखार पंजों से मुक्ति की चाहत में,
लज्जित होकर आत्मसमर्पण को,
बेबस महंगाई अंतरिक्ष से उतरकर,
तन मन धन से है तैयार व बेकरार ,
धरतीमाता को माफीनामा सौंपकर,
पाताल लोक में समा जाने को ,
धरती किसी की जागीर नहीं है,
कुदरत है जीव कल्याण उपहार,
महंगाई का यह बहुआयामी संदेश,
सुसज्जित धरा खुश जीव परिवेश !


✒️ राजेश कुमार कौशल




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Uttam rachna mahoday 👏👍 - Pranam sweekar karein🙏🙏

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