झूमते हवा से मनचले
हम कहीं पे क्यों बसर करें...
रास्तों से अपनी यारियां
मंजिलों की क्या फिकर करें...
क्या हे जिंदगी के फैसले..
चाहे गम हो साथ में चले
मुस्कुराहटों को ओढ के
हम तो अपनी धुन में लो चले......
रास्तों से अपनी यारियां
मंजिलों की क्या फिकर करें
निकले जब सफर के लिए
मुडके आशियाना क्यों तकें
हस्ते हस्ते काटना सफर
फिर क्यों उदाशियां चुने
रास्तों से अपनी यारियां
मंजिलों की क्या फिकर करें
मस्त हो हवाओं संग बहें
बादलों को सरफिरा कहें
ऊंची चोटियों पे एक दिन
जाके आसमां को चूम लें.......
रास्तों से अपनी यारियां
मंजिलों की क्या फिकर करें
साक्षी लोधी