तेरा दीदार करूं तो करूं कैसे तेरे हुस्न पे ये जो पहरे बहुत है,
तेरी इन आंखों में डूब तो जाऊं मगर तैरना मुझे आता नहीं और ये आंखें भी तुम्हारी गहरे बहुत हैं,
सोचता हूं बैठूं कभी मैं भी तुम्हारी इन जुल्फों की छांव में,
मगर क्या करूं पास तुम्हारे मंडराते ये भौंरे भी बहुत हैं..!
✨कमलकांत घिरी..✍️