मैं लौटना चाहती थी
फिर से उन गलियों में
जिनमें बचपन बिता था
किसी वक़्त में।
मैं लौटना चाहती थी
अपने संगी- साथियों संग
जहाँ वक़्त बिताती थी।
उस पीपल की छाँव में
जहाँ घंटो बातें किया करते
किसी वक़्त में।
मैं लौटना चाहती थी
घर के उस आँगन में
हर उस जगह
जँहा भाई - बहनों संग
यादें बसी थी।
मैं लौटना चाहती थी
उस बेफिक्र जिंदगी में
जँहा कल का सोचे बिना
मस्त - मदमस्त सा
हम जीते थे।
आज वो लम्हें, वो पल,
वो बातें, मुलाकाते
गुजरा हुआ हर वो पल
मुझे बहुत याद आ रहें
जिन्हें पीछे छोड़ आई हूँ।
क्या गुजरे हुए वक़्त से
मैं डर गई हूँ ?
क्या अपनों से बिछुड़ने
का गम मुझ पर
हावी हो रहा है?
अतीत के ख्यालों ने
मुझे घेर रखा है,
जकड़ी-सी लगती हूँ
शायद मैं उदास हूँ।
और अकेली भी।
मैं अतीत में डूबी थी,
अचानक दरवाजे की
बेल बजी थी और
मेरी तंद्रा भंग हुई।
काश! मैं लौट पाती
फिर से उन पलों में
जीना चाहती हूँ फिर
एक बार उन पलों को।
मैं लौटना चाहती हूँ।
प्रो. स्मिता शंकर,बैंगलोर

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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