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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

तर्क और ईश्वर: तुम और मैं

तुम कहते हो स्वयं को तर्क का अनुगामी
अनुभव की कसौटी पर बुद्धि के उपासक
तुम्हें ईश्वर का अस्तित्व न स्वीकार
धर्म पर न आस्था, आत्मा पे संशय अपार।

तुम कहते हो, धर्म ही शोषण का कारण बनता
भाग्यवाद हर लेता है मनुष्य का विवेक और योगदान
अंधविश्वास की बेड़ियाँ बनाती हैं बेबस और मजबूर
प्रेम और सहयोग की राहें हो जाती हैं विरक्त, खण्डित।

तुम चार्वाक, बुद्ध, और अम्बेडकर के नाम गिनाते हो
पाश्चात्य विचारकों का ध्वज फहराते हो
प्रोटागोरस से वोल्टेयर तक जयगान करते
क्या बस यही अन्तिम सत्य मानते हो?

तुममें साहस का संकट, नीतियों में दोष
संसाधनों का अभाव, जागरूकता का अवरोध
इन सबको छिपा कर, तुम ईश्वर को नकारते हो
क्या यही तुम्हारा समाज सुधार है, जो तुम उठाते हो?

वो गरीब, जो दुख के सागर में डूबते
ईश्वर में अपना सहारा खोजते
उनसे तुम उनका अन्तिम सहारा छीनते
क्या यही है तुम्हारा प्रेम और दया?

महान दार्शनिकों ने ईश्वर का प्रतिपादन किया
शंकर, रामानुज, प्लेटो ने गुणगान किया
संत ऑगस्टाइन, लाइबनिज, हेगेल के विचार
सत्य को देखा आत्मा के द्वार।

विनती है तुमसे, सुनो मेरी पुकार
नैतिकता नहीं, बुराई का संहार करो
धर्म की गलत व्याख्या करने वालों को ललकारो
सच्चे धर्म की ज्योति जलाकर अंधकार मिटाओ।

तुम संग हर पथ पर बढ़ता जाऊँगा
जब तुम बुराई पर विजय पाओगे
परन्तु ईश्वर के खण्डन से बचो
जो करोड़ों विश्वास का आधार है।

परम्परा, धर्म और संस्कृति है राष्ट्र की शान
इतिहास की जड़ों में बसी है इसकी पहचान
आओ, मिलकर बुराई को मिटाएँ, तार्किक बनें
ईश्वर के आशीर्वाद से मानवता को संजीवनी दें।


-प्रतीक झा 'ओप्पी'
चन्दौली, उत्तर प्रदेश




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