गुस्से में लिख लिखकर मिटाए जा रही।
पढने का मौका न देती घबराए जा रही।।
जिसका परचम आज भी लहराए खूब।
अमन की शक्ति परचम उठाए जा रही।।
अपनी जुबान से पहचान बनाई जिसने।
समय की मार से आँसू बहाए जा रही।।
किस बात के असर से है दुखी 'उपदेश'।
कहती कुछ नही पीडा छुपाए जा रही।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद