पेड की डाली की तरह लोच कायम रखो।
बसेरा देना छोडो मत सहना कायम रखो।।
ज्ञान आते ही समझने लगोगे खुद को मिट्टी।
जमीन की तरह रहो आसमान कायम रखो।।
जरूरत हवा की सूरज की पानी की सबको।
ऐंठन छोडो व्यवहार में रहबर कायम रखो।।
भले ही जडो का उलझाव सताए 'उपदेश'।
पेड की तरह सबको छाँव देना कायम रखो।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद