बधाई की छड़ी अब कदम को चूमने लगी
प्रबध प्रारब्ध में वो अमीरस को भरने लगी !!
प्रतिभा सदाबहार खिलती रहे वो कहने लगी
उम्मीद को सफ़ल राहें मिले वो गुनगुनाने लगी !!
जहाँ पड़े कदम मिले कामयाबी जोश भरने लगी
अर्ज है रब से दुआ मुक़म्मल हो जो लगने लगी !!
निःस्वार्थता से भरी थी आस जो खुश्बू देने लगी
ऊंचाइयों का कारवां यूहीं गति दे वो कहने लगी !!
नहीं मुरझाता वो फूल जो पूर्ण पोषित हो……
निष्कलंक,परछाई छाँव दे फलित होने लगी !!