बहुत डरती थी कहीं मोहब्बत न हो जाए।
शादी के पहले पाप कहीं मुझसे न हो जाए।।
गाँव से शहर आई पढ़ाई भी चलने लगी।
सहेलियों की छेड़छाड़ से मन आहत हो जाए।।
किसी तरह साल बीता और आँख लड गई।
तन्हाई में सोच सोचकर मन व्यथित हो जाए।।
रिश्ता मधुर आज भी 'उपदेश' घाव छोड़ गया।
पुरानी याद आते ही मन उथल-पुथल हो जाए।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद