बहुत रो लिए हम भी, अब जवाब देना था,
जिसने मासूमों को मारा, अब उसे मिटाना था।
जिस धरती ने आँचल में फूल पाले थे,
आज उसी धरती ने फौलाद निकाले थे।
कभी मेंहदी सूखती थी हाथों में धीरे,
अब वही हाथ थामे हैं बंदूकें सीने से चिपके,
कभी कश्मीरी चाय में मिठास ढूंढते थे,
आज उस वादी में गरजते फाइटर जेट दिखते हैं।
ना कोई मज़हब देखा, ना कोई नाम,
इस बार हर गद्दार पे टूटा है कहर तमाम।
“सिंदूर” सिर्फ़ साज नहीं, अब संकल्प है,
जिसने हमें रुलाया, अब वो ख़ुद कालदंड का लक्ष्य है।
एक एक गोली नहीं चली, एक एक संदेश गया,
भारत अब चुप नहीं, इतिहास कह गया।
जो खून बहा था बेवजह, अब उसका हिसाब हुआ,
जो चीख़ थी दिलों में बंद, अब वो नकाब हुआ।
माँ की आँखों में अब भी आँसू हैं, पर डर नहीं,
वो जानती है—अब उसका बेटा तिरंगा लिए चुप नहीं।
जिस बेटी ने चूड़ियाँ तोड़ी थीं कल,
आज वो फौलाद बन खुद ले रही है पलटवार का हल।
"ऑपरेशन सिंदूर" था वक़्त का बयान,
हर धमाके में गूंजा हिंदुस्तान।
ये सिर्फ़ बदला नहीं, ये था लहू का उत्तर,
पल्हलगाम की चीख़ों का सीधा प्रहार।
अब डर नहीं, अब संकल्प है,
अब दुश्मन के दिल में हलचल है।
सीमा के उस पार जो बैठे थे छुपकर,
अब काँप रहे हैं — “भारत जागा है अब उठकर!”