श्रापों और छलों के मध्य,
फंसा था वह वीर महान,
सूर्यपुत्र कर्ण की गाथा,
हर युग में अद्वितीय प्रमाण।
धरती का पुत्र, राधा का लाड़ला,
धर्म और अधर्म की रेखा,
उसने अपने रक्त से खींची।
श्रापों का था बोझ भारी,
गुरु ने दिया वह वरदान,
छल और धोखे की दुनिया में,
कर्ण का सच्चा था मान।
कवच-कुंडल जब छीने गए,
फिर भी दानवीर ने धर्म निभाया,
भगवान ने स्वयं उसे मारा,
भाग्य का ऐसा खेल रचाया।
रथ का पहिया जब धँसा भूमि में,
वह धर्म के पथ पर था खड़ा,
कृपण था उसका जीवन,
पर दिल में वीरता का स्वप्न बड़ा।
धर्मराज के भाई का धर्म,
रणभूमि में कहीं खो गया,
स्वयं भगवान ने छल किया,
उसके श्रापों का दिन आ गया।
श्रापों की चुभन में जीया,
छलों की दुनिया में पला,
मित्रता और निष्ठा के पथ पर,
वह अपने कर्म में भला।
सच्चाई का प्रतीक, दानवीर की कथा,
युग-युग तक गाएंगे हम,
उसकी वीरता की महक।
सूर्यपुत्र कर्ण का बलिदान,
हर हृदय में अमर रहेगा,
श्रापों और छलों के मध्य,
उसका अद्वितीय योगदान रहेगा।
भगवान ने स्वयं उसे मारा,
पर उसकी आत्मा अमर रही,
कर्ण की महानता की गाथा,
सदा संसार में गूँजती रही।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




