कुछ नहीं पूछूंगी
कुछ नहीं कहूंगी
रोकूंगी भी नहीं
टोकूंगी भी नहीं
हर शिकायतों पर अब
लगा दिया है पूर्ण विराम।
बर्फ की सर्द सफेद
मलमली चादर ने
पर्वत को
ढक दिया हो जैसे,
उसी तरह
ढंक लिया है खुद को
अनजाने आवरण से
खुले पिंजरे में मैं
एक कैद पक्षी की तरह....।
क्या हुआ जो
बीत जा रहे हैं दिन
और मैंने नहीं देखा तुम्हे...
क्या हुआ जो
घंटों की बातें भी
चन्द लम्हों में हो गई तब्दील
क्या हुआ अब
मेरे और तुम्हारे बीच
की उष्मा को
किसी ने चुरा लिया है...
इतनी चौड़ी खाई
पैदा हो गई हमारे बीच
जिसे मैं पार नहीं कर पाई
और तुमने कोशिश नहीं की....।
----वनिता झारखंडी