सबको है इन्तज़ार कबसे, गिरने की हमारी बारी का,
दुश्मन बनी बैठी है दुनिया युवाओं की बेरोज़गारी का,
ये देखकर अहसास हुआ, हमको भी अपनी जिम्मेदारी का
अब लेना पड़ेगा सहारा हमको किताबों के संग घर की चार दिवारी का,
कमलकांत घिरी ✍️
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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दुश्मन बनी बैठी है दुनिया युवाओं की बेरोज़गारी का,
ये देखकर अहसास हुआ, हमको भी अपनी जिम्मेदारी का
अब लेना पड़ेगा सहारा हमको किताबों के संग घर की चार दिवारी का,
कमलकांत घिरी ✍️