"ग़ज़ल"
आग़ाज़ अपने बस में न अंजाम की ख़बर!
रवाॅं है ज़िंदगी का कुछ अजीब ये सफ़र!!
ख़ुदा को समझने का ये दावा तो करता है!
नाकाम रहा ख़ुद को ही समझने में बशर!!
अगर दिल में नहीं है पाकीज़गी तुम्हारे!
भला आएगा कहाॅं से दुआओं में असर!!
इस देश की नज़र में है दोनों की अहमियत!
दिलों में बसा है गाॅंव तो ऑंखों में शहर!!
ज़िंदगी और मौत को समझना है मुश्किल!
ज़हर लगे दवा और दवा लगे ज़हर!!
मेरी दीवानगी ऐ 'परवेज़'! समझेगा वही!
जिस ने देखी हो कभी वो जादू भरी नज़र!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad