सूरज भी औंघ रहा बैठे बैठे
अब तो बह रहीं गुलाबी शर्द हवाएं हैं।
दिन रात लिहाफ़ें ओढ़े अंधेरे ओटे से
झांके।
मौसम शायराना खुशनुमा जयकाना
बन गया है।
चायों की चुस्की गानों की मस्ती
हर रंग जम गया है।
गुलों में रंग फिजा के संग
फर फर कर दिलों में उमंग
एक नया नवरंग
जीवन तरंग नवजीवन का अवतरण
न कोई भरम
सिर्फ़ सच्चाई की सफेदी ओढ़े
नदिया ताल तिलैया बड़े हीं या छोटे
गुलाबी शर्द हवाएं आईं है
मस्त शर्दी संग लाई हैं
सब पे मस्ती छाई है
पूरी सृष्टि हर्षाई है
क्या खूब छटा छाई है!
क्या खूब नवजीवन की अंगड़ाई है..
लगता दुनिया की सगाई है...
लगता दुनिया की सगाई है...