मेरा भी ख्वाब रहा कुछ बनकर दिखाना।
बह गए बहाव में समझ ना पाये ज़माना।।
उसकी सोहबत में जाम से दोस्ती कर ली।
जाम से जाम टकराए ताने सुनाये ज़माना।।
तिलमिला गया मन बेचैन हो रही तबियत।
मलाल की वजाहत से बाज आये ज़माना।।
मिले बगैर बिछड़ने को धोखा कहा जाए।
बस एक खालिस निभाने ना आये ज़माना।।
फासला बढ़ गया पुराने दोस्त भी नही रहे।
गुजरी बात कैसे 'उपदेश' समझाये ज़माना।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद