जो नहीं सोचता वो क्या सोचे, वो जो सोचे वो भी क्या सोचता रहे,
वक़्त के हाथों में है पर क्या पता, बस वही राह चलते कहीं रुकता रहे।
दूरी है जितनी भी है पर पास तो नहीं,
सुकून है कैसे मिलेगा पर ये आस-पास तो नहीं दिल में है जो बात पर वो राज़ तो नहीं,
धड़कने चुप हैं, पर फिर भी ख़ामोश आवाज़ तो नहीं।
कानों से झुके रहे लोग,
पर खुद के मुँह से निकली जुबां का कहीं वास तो नहीं सच को छुपाना भी दुनिया का रिवाज तो नहीं, क्या खोया है तुमने, उसकी तुम्हें तलाश तो नहीं।
ख़ुदा को मिलेगा रस्ता तुम्हारा,
ये सपना तुम्हारे पास तो नहीं क्यों खोजते हो उस मंज़िल को जो बे-लिबास तो नहीं,
क्या यह एहसास कोई गहरा, अनसुलझा लिबास तो नहीं।
- ललित दाधीच


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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