अनवरत चक्र
डॉ0 एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
घूमता पहिया समय का, कभी स्थिर न रहता है,
जन्म लेता है पल एक, दूजा पल ही ढलता है।
जो आज है नवीन आभा, कल अतीत की धूलि है,
हर आरंभ का निश्चित ही, अंत में मिलना जुली है।
देखो ऋतुओं का आना जाना, सूरज का नित उदय होना,
फिर संध्या की गोद में छिपना, यह काल का ही तो कोना।
नदी का बहता निर्मल जल भी, सागर में मिल जाता है,
हर क्षण परिवर्तन की गाथा, यह प्रकृति हमें सुनाता है।
संबंधों के ताने-बाने, बनते और बिखरते हैं,
भावनाओं के रंग भी देखो, चढ़ते और उतरते हैं।
जो कल थे प्राणों से प्यारे, आज धुंधली सी यादें हैं,
जीवन की इस यात्रा में, कितने ही बदलते वादे हैं।
परिवर्तन ही नियम शाश्वत, इससे मुँह मोड़ना कैसा,
हर बदलाव में छिपा है देखो, जीवन का ही तो संदेशा।
नया अंकुर फूटता है फिर से, पुरानी पत्तियाँ गिरकर,
आशा की किरण दिखती है, हर निराशा के मिटकर।
इसलिए काल के इस चक्र को, भय से मत देखो प्राणी,
यह सिखाता है जीना हर पल, बनकर नवजीवन दानी।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




